इस पर भी प्रश्नचिन्ह
हर व्यक्ति अपने को सही मानता है
सही साबित करने में लगा रहता है
साम - दाम - दंड - भेद भी आजमाता है
सामनेवाला भी जानता है यह बात
कुछ कह नहीं पाता
इतने विश्वास से वह कहता है कि
अविश्वास उसके सामने टिक ही नहीं पाता
अब करें तो क्या करें
सब लोग भी मानने लगते हैं
एक ही झूठ बार - बार बोला जाएं
तो वह इतना मजबूत हो जाता है
कि सत्य उसके सामने मजबूर हो जाता है
लगता है दुनिया ही झूठों से भरी है
लेकिन नहीं
कुछ ऐसे अटल सत्यवादी भी होते हैं
जो हार नहीं मानते
असत्य को हराकर ही मानते हैं
तभी तो दुनिया चल रही है ।
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