Thursday, 28 September 2023

कर्ज

कर्ज पर कर्ज लेते रहें 
जिंदगी पर खर्च करते रहें 
कर्ज बढता गया
जिंदगी को संवारने- सुधारने में 
कर्ज पैसों का नहीं था
वह तो कैसे भी गुजार लिया 
लालच भी नहीं फिजूलखर्ची भी नहीं 
संतोष ही धन माना 
उन्नति भी हुई 
ऐसा नहीं कि जहाँ थे वहीं हैं 
सफर में मंजिल तक पहुंचे भी
न जाने क्यों लगता 
यह सफर मेरा अकेले का नहीं 
यह मेरी उपलब्धि नहीं 
कारण समझ आया 
कर्ज एहसानों का था 
उस एहसान का एहसास 
अब भी जेहन में 
पैसे का कर्ज तो चुक जाता है ब्याज सहित 
एहसानों का कैसे चुकाये 
जिदंगी पर खर्च करते करते जिंदगी ही खर्च हो गयी 
अब जो बाकी बची 
वह यह सोचते 
कैसे और कहाँ कटी 

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