आखिरी दिन है
इसके पहले ढेड दिन , पांच दिन , सात दिन की मुर्ति का विसर्जन हो गया है
आज बप्पा की बिदाई का आखिरी दिन है अब अगले साल आएंगे आशीर्वाद देने
सबसे पहले उस स्थान से हट जाते हैं फिर लोगों के साथ समुंदर के किनारे
गहने , आभूषण, वस्त्र सब हटा लिया जाता है
हार - फूल निकाल दिए जाते हैं
इसके बाद जल में विसर्जित कर दिया जाता है मुर्ति
मिट्टी से बनते हैं फिर उसी जल मिट्टी में मिल जाते हैं
हम गणपति का विसर्जन नहीं करते उनकी मुर्ति का करते हैं
सबको इन दिनों खुब स्नेह हो जाता है मोह हो जाता है
उदास है जाते हैं ऑखों में अश्रु आ जाते हैं
लेकिन बिदाई तो होनी है
ऐसे ही तो मानव शरीर है
आत्मा तो अजर - अमर है
वह दूसरा देह धारण करेंगी
एक समय इस देह का परित्याग करना ही होता है
माया - मोह त्यागना ही पडता है
मिट्टी का शरीर मिट्टी में मिलना है
यही तो प्रकृति का चक्र है
आना और जाना इसे रोका नहीं जा सकता
जन्म उत्सव से शुरू होता है मृत्यु भी आखिरी क्रियाकर्म के साथ खत्म
बप्पा को प्रेम और उत्साह से लाते हैं और उतने ही उत्साह से बिदा किया जाता है
सब लोग गणेशमय हो जाते हैं
इंतजार रहता है साल भर
तभी तो सब कहते हैं
गणपति बप्पा मोरया
अगले बरस तू जल्दी आ ।
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