Sunday, 8 October 2023

सोच और सोचना

सोचते  रहे सोचते रहे
सोचते- सोचते जिंदगी का आधा से ज्यादा हिस्सा गुजर गया 
जो सोचा वह तो हुआ नहीं 
जो सोच रहे हैं उसका भी पता नहीं 
सोचने लगी जब होना ही नहीं तब सोचना क्यों??
यही सोचते सोचते कब ऑख लग गई
चिड़ियों की चहचहाहट से पता चला सुबह हो गई 
जल्दी जल्दी उठ बैठी
सोचने लगी पहले क्या करूँ 
कौन सा काम यह कि वह
सोचा खाना बनाना है
चाय - नाश्ता तैयार करना है
सोचने लगी महरी आएंगी तो क्या काम करवाना है
कौन से मार्केट से सब्जी लेनी है
जहाँ सस्ता मिलता हो
कुछ पैसे बच जाएं तो एक रिश्तेदार की शादी में जाना है
यही सोच रही थी घंटी बजी
दरवाजा की ओर बढी यह सोचते
इस समय कौन आया होगा ।

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