तो सुदामा जैसा दोस्त भी बिरले ही
वह शख्स जिसका मित्र त्रिभुवन का स्वामी हो
वह स्वयं दरिद्रता से घिरा हो
फिर भी मित्र से कोई अपेक्षा नहीं
पत्नी के बार - बार कहने पर मिलने जाना
घर में कुछ नहीं फिर भी खाली हाथ कैसे जाएं
भूने हुए तंदुल सौगात में ले जाना
शर्म महसूस करना कि द्वारिकाधीश को ये कैसे दूं
कांख में पोटली छुपाना
बार - बार आग्रह करने पर भी न देना
अपने बाल सखा को जो बचपन से पहचानता हो
खींचकर लेना और दो मुठ्ठी फांककर दो लोक दे देना
यह बात तो सुदामा को भी नहीं पता
उनका दोस्त क्या कर रहा है
वापस लौटते समय खाली हाथ लौटना
फिर भी दोस्त के प्रति कोई दुर्भावना नहीं
ईर्ष्या नहीं शिकायत नहीं
मांगा नहीं
दर दर भिक्षा याटन करने वाला अपने मित्र से कुछ नहीं मांगा
क्योंकि मित्रता में तो सब बराबर होते हैं
छोटा - बडा या अमीर - गरीब नहीं
न सुदामा ने अपने को छोटा समझा
न कन्हैया ने उनको छोटा महसूस कराया
बिना बताये दे दिया
जिसका मित्र जगत का स्वामी
वह हो दर - दर का भिखारी
एक कृष्ण दूजे सुदामा
दोनों की दोस्ती न्यारी
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