Monday, 6 November 2023

मैं घर का बडा

मैं घर का बडा
हमेशा बडा ही बना रहा
कभी छोटा हो ही नहीं पाया
बचपन था तब भी बडा
आज उम्र के इस पड़ाव पर भी बडा
अब थक गया हूँ
जिम्मेदारियो का बोझ उठाते उठाते
सबकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने की कोशिश करते हुए
अब मैं मुक्त होना चाहता हूँ

छोटा बनना चाहता हूँ
बचपना करना चाहता हूँ
मनमानी करना चाहता हूँ
जी भर कर जीना चाहता हूँ
किसी की परवाह नहीं करना चाहता हूँ
इन सबसे मुझे क्या मिला
बस मैंने हमेशा अपने मन को मारा
छोटो को संभाला
आज सब मस्त है
मैं अभी भी त्रस्त हूँ
कब तक इस बडेपन का बोझ ढोऊ
कंधे बोझिल हो गए हैं

बस अब बहुत हुआ
बडे में सहनशीलता
छोटे में उत्पात
यही है हमारी मानसिकता
अब यह बदलाव करना है
छोटे भी अब छोटे नहीं रहे
वह भी बडे हो गये हैं
जैसे मैं वैसे वह
यही होनी चाहिये 
सबकी सोच

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