यह है थाली की जान
नहीं इसको कोई महत्व का स्थान
स्वाद बढाता बस
नहीं उसका नाता पौष्टिकता से
सलाह देते सब
इससे दूर रहो
रह नहीं पाता कोई
ऐसे ही कुछ दोस्त बन जाते हैं
गप्पा ‐गोष्ठी तक ही सीमित
बैठ जाते जहाँ साथ
बन जाता माहौल
नहीं लेकिन यह किसी काम में आते
जरूरत पडने पर दूर ही रहते
सुख - दुख में नहीं निभाते साथ
ये लोग अचार की तरह रुचिकर तो होते हैं
काम के कुछ नहीं
उनसे रखो उतना नाता
जितना समझो आवश्यकता।
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