वक्त का परिन्दा कहाँ रूकने वाला
कितना भी जोर लगा लो
वक्त मुठ्ठी से रेत की तरह फिसल जाता है
वक्त फिसलता जरूर है
अपनी छाप छोड़ना नहीं भूलता
वह हममें समाया रहता है
जुदा नहीं होता बस आगे बढता जाता है
वक्त ने न जाने कितने गुल खिलाता है
इसकी ताकत का अंदाजा तो किसी को नहीं
बिगाड़ना- बनाना तो इसके हाथ में
पल भर में क्या से क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता
अर्श से फर्श और फर्श से अर्श पर लाने की शक्ति
प्रलय और निर्माण दोनों का साक्षी
वक्त गुजर जाएंगा जैसा भी हो
सही भी है पर वह गुजरने की प्रक्रिया??
जिसने जाना है जिसने समझा है जिसने महसूस किया है
वह तो वक्त से डर कर ही रहेगा
जिंदगी का भरोसा नहीं वैसे वक्त का भी तो नहीं।
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