सबको संभालने वाली है
घर - परिवार की धुरी है
तुझे तो मजबूत बनना है
शिक्षा से नाता जोड़ना है
अपने लिए भी और सबके लिए भी
संसार की भलाई इसी में है
तुझे अपनी सामर्थ्य पहचाननी है
मैं कुछ नहीं कर सकती यह धारणा बदलनी है
मातृ शक्ति है इससे तो तू अनभिज्ञ नहीं
संसार को गढने वाली
स्वयं को भी गढ
कदम से कदम मिलाकर चल
रोना - धोना और ऑखों में ऑसू लाना छोड़
कलम पकड़
कम्पयूटर और लैपटॉप पकड़
उंगलियां अब सुई धागों पर नहीं इन पर भी चला
हाथ में अब बर्तन ही नहीं स्टीयरिंग भी पकड़
अब धीमी और शर्मीली आवाज में नहीं बुलंद आवाज में बोलना सीख
तू सबको सिखाती है तू स्वयं भी तो सीख
स्वयं आत्मनिर्भर बन
आत्मविश्वास से डोल
नारी तू देवी नहीं मानवी बन
पूजा स्थान नहीं कर्म स्थल को चुन
अपना परचम फहरा
दिखला दे स्वयं को साबित कर
हमसे जमाना है हम जमाने से नहीं ।
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