वह बिल्कुल था अपना
अक्सर वह आते रात को
वह भी नींद में
सुबह उठते तो सोचते
याद करते
क्या देखा सपने में
कभी-कभी बहुत अच्छे
कभी-कभी बहुत डरावने
उसका मायने निकालने की कोशिश करते
कुछ समझ नहीं आता
आजकल सपने भी आना बंद
देखना तो बिलकुल नहीं
जिंदगी की हकीकत देख ली
सपने क्या देखे
सपना सच होता है
सुनते आए थे
अब इस पर विश्वास नहीं
जो बीत रहा
वो बस अपना है
जो बीत गया
वह सपना था
सपने की भूलभूलैया में
हकीकत का क्या काम
भले कोई छोड दे अपना हाथ
बस चलना है वक्त के साथ
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