याद आते हैं वे दिन
बचपन और बस्ता का साथ
जब बाबूजी बस्ता उठाएं अपने कंधों पर
मैं हाथ पकड़ उछलती- कूदती चलती साथ में
बचपन पर बोझ न लादे
मेरा बस्ता बाबूजी ने उठाया मैंने अपने बच्चों का
अब मेरे बच्चे अपने बच्चों का
यह तो भार नहीं प्यार है
यही सब बातें तो जेहन में आज भी याद है
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