Saturday, 6 January 2024

हमारे राम आ रहे हैं।

निर्वासित होने का दुख
जब अपने ही घर से हो निर्वासन 
राम की व्यथा कौन समझेगा 
राज्यभिषेक होने जा रहा हो
चौदह वर्ष का वनवास 
नियति ने क्या खेल दिखाया
जिसकी कल्पना भी न होगी
वचन पिता का मांग  माता की
वह भी प्राणप्रिय भाई के लिए 
किसका विद्रोह करते 
पत्नी और भाई का साथ मिला 
चल पडे वनवास को 
अयोध्या का बुरा समय शुरू ही हो चुका था
राजा दशरथ के प्राण पखेरू उडे
भरत ने सिंहासन पर बैठने से इनकार कर दिया 
माता कैकयी को अपयश के सिवा और कुछ हासिल ही न हुआ 
पति को खोया बेटे से तिरस्कृत हुई
वीरागंना कुमाता हुई
अयोध्या वासी तो बिन राजा के रहें 
पूरी अयोध्या को यह भुगतना पडा
चले वनवासी तो मित्र भी रास्ते में बनते गए
निर्वासित- उपेक्षित- पिछडे 
  निषाद भी मिले शबरी भी मिली
सुग्रीव और हनुमान मिले
रावण का भाई विभिषण मिला
राम को स्वयं को सिद्ध करना था 
कैकयी ने राज छिन लिया लेकिन जन जन के नायक बने
पत्नी के लिए शक्तिशाली रावण से जूझ जाना
लंका विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटना
सिंहासन पर भले न बैठे राजा तो वे ही थे

हमारे राम ने यह भी सिखाया 
किसी को कम मत समझना
कौन न जाने कब तुम्हारे काम आ जाएं 
ईश्वर होते हुए भी  उन्हें बंदर और भालू की सहायता लेनी पडी

आज हमारे राम अयोध्या में फिर विराजमान हो रहे हैं 
लेकिन दिलों में तो वे थे ही
कहाँ गए थे ?
इस बार निर्वासन सैकड़ों बरसों का हो गया
यहाँ भी न्याय की जीत हुई है
सुप्रीम कोर्ट से जीतकर आए हैं 
जबरन अधिकार नहीं किया है
सही मायनों में यही तो राम राज्य है
राम ने किसी का हक नहीं छीना
न किष्किन्धा का न लंका का
असली उत्तराधिकारी को सौंप दिया
वह जो अपना राज्य छोड़ सकता है वह दूसरों का क्यों ले 
राम आक्रांता नहीं थे
चाहते तो अयोध्या के राजा उसी समय बन जाते
लेकिन नहीं जबरन नहीं चाहा उन्होंने 
जनता के घोषित राजा हुए
यही तो राम राज्य है
राजा तो सबका होता है
जनता का अपना होता है
दिलों पर राज करता है
मर्यादा में रहता है
राम से बडा मर्यादा पुरुषोत्तम कौन ??

मन प्रसन्न है गा रहा है
राम आएंगे तो दीप जलाएंगे 
अंगना सजाएगे। 

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