दुनियां में कोई अपना या नहीं होता पराया
भाग्य ने जब जब खेल दिखाया
सबने अपना रंग दिखाया
रंगबिरंगी दुनिया है
रंग है कितने बेरंग
इंद्र धनुष सा दिखता तो है
बस झलक दिखलाकर छुप जाता है
यहाँ बादलों के घेरे हैं
अंधड तूफानों का साया है
कडकडाती बिजली है
कब गिर पडे कह नहीं सकते
बचना हो तो बच लो
कुछ जतन कर लो
अपने रंग खुद भरो
नहीं किसी का भरोसा
आएगी भोर सुहानी
नहीं रहता हमेशा एक सा पानी
बहता जाता है
लहरों के साथ बहकर
नैया पार लगाना है
अपना खेवैया स्वयं ही बनना है
यहाँ कोई नहीं होता
अपना या पराया
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