Saturday, 6 April 2024

गए थे हम उनके घर

गए थे हम उनके घर
वह जिसे अपना समझा था
जहाँ अपना वहाँ औपचारिकता का क्या काम 
हमें लगा हमारे जाने पर मुख पर मुस्कान आ जाएंगी
बांछें खिल उठेंगी 
बिना बताएं जाएंगे
एक आनंददायक सरप्राइज देंगे 
पर यह क्या ?
यहाँ तो ऐसा कोई भाव नहीं दिखा
चेहरे पर मुस्कान की तो छोड़ दो चेहरा ही उतर गया 
सब एक-दूसरे को कनखियों से देखने लगे
ऐसा लगा मानों कोई पहाड़ टूट पडा
यह कहाँ से आफत की बला आ गई 
सब प्लान चौपट हो गया
कह तो सके नहीं मन मसोसकर रह गए 
ऐसा लगा कि जैसे हमारे समय की तो वैल्यू ही नहीं है
खैर आवभगत हुई 
चाय - पानी का दौर चला
जब आए दरवाजे तक छोड़ने 
कह ही दिया 
ऐसे कभी किसी के घर नहीं आते हैं 
आना हो तो पहले से इनफार्म करके आना
हमने सर हिलाकर कहा - ठीक है
याद आया कि हमारे दरवाजे हमेशा खुले रहते थे
जिसको आना हो आए
दूध वाली चाय भले ना देते  हो सम्मान भरपूर देते थे
सब सदस्य एकत्रित हो बैठ बतियाते थे
हमको लगा 
अब जमाना बदल गया है 
लोगों की भावना बदल गई है
अब हमको भी बदलना पडेगा
बिना बताएं चाहे कितना भी खास हो
बिना बुलाएं बिना बताएं नहीं जाना है
सबक मिला अच्छा 
गये तो थे सरप्राइज देने
सरप्राइज लेकर आ गए। 

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