Wednesday, 17 April 2024

किस बात का फिर गुरूर ऐ समुंदर

इतना गुरूर अच्छा नहीं ऐ समुंदर 
माना कि तू विशाल है
तुझमें बहुसंख्य रत्न समाएं हैं 
तेरी थाह लेना कठिन है 
तेरी गहराई कोई माप ही नहीं सकता
प्रकृति का विध्वंश तुझमें समाया है
सारी नदियाँ तुझमें ही समाती है
इसके बाद भी लोग तुझे देखने ही जाते हैं 
तू किसी के काम नहीं आ सकता 
ना किसी प्यासे की प्यास बुझा सकता है
इतना जल है पर तेरी एक बूँद भी कोई काम की नहीं 
किस बात का फिर गुरूर करता है
अपने विध्वंसक होने का 
तू किसी को अपनाता नहीं 
सबको बाहर किनारे पर फेंक देता है
ना अपना सकता ना जीवन दान दे सकता 
तो तेरा होना या ना होना 
कुछ मायने नहीं रखता 
होगा तू विशाल 
उस बात से हमें क्यों मलाल 
तू अपनी रौ में हम अपनी रौ में बहते रहें 
तू अपनी मौज में लहराता रह
हम अपनी मौज में खुशी बांटते रहें 
इसी बात का सुकून 
होना उसका होना जो किसी के काम आए 




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