माँ मैं किसे कहूँ
धीरे- धीरे मेरी बेटी
मेरी ही माँ बन रही है
आज तक मैंने उसे संभाला
अब वह मुझे संभाल रही है
फर्क है खूब
दोनों एक-दूसरे को संभाल रहे हैं
मैं कहती हूँ उससे
ज्यादा मत बोल
वह कहती मुझसे
फालतू का बडबड मत करो
मैं कहती हूँ
अब इतना खाना मैं नहीं खा सकती
वह कहती मुझसे
नाटक मत दिखाओ
चुपचाप खा लो
मैं सुबह उठती
वह कहती
सोए रहो
उठ कर क्या करना है
मुझे लगता
उसकी इच्छा पूरी नहीं की मैंने
वह कहती
मेरे बारे में ज्यादा मत सोचो
मुझे मोबाइल में रमा देख
वह कहती
कुछ बात करों
क्या मोबाइल लेकर बैठी हो
मुझे घूमने नहीं जाना
वह जबरदस्ती करती
चलो जरा बाहर निकलो
मैंने तो उसे कपडे नहीं दिलाए मनपसंद
वह ब्रांडेड दिलाती है
ऊपर से डाटकर कहती है
आपकी पसंद तो सडेली है
वह मेरा हाथ पकड़ कर
मुझे रास्ता क्रास करवाती
मैं डरकर
इधर-उधर देखती
मुझ पर विश्वास नहीं क्या
मरने नहीं दूंगी
मैंने नुक्कड़ और गली के चाट - पकौडा खाया
वह मुझे बडे बडे होटल में ले जाती है
मैं छुरी - कांटे को देखती हसरत से
वह कहती हाथ से खाओ
मैं अपने को कुछ नहीं समझती
वह मुझमें जमाने भर की खूबियाँ देखती है
आप यह कर सकती हो वह कर सकती हो
ना जाने वह अपनी माँ को क्या समझती है
लोग बेटी को सिखाते हैं
वह मुझे सिखा रही है
अब पता नहीं चला
कब वह बेटी से माँ हो गई
मैं माँ से अंजान - ना समझ बेटी
यह बात सब नहीं समझेंगे
बस माँ- बेटी ही समझेंगे
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