Saturday, 25 May 2024

नियति के खेल निराले

काश जिंदगी तू एक किताब होती
तेरे हर पन्ने को लिखने का अधिकार मुझे होता 
मैं स्याही से नहीं लिखती पेंसिल से लिखती
कुछ गलत हो गया तो तुरंत मिटा डालती 
बडे स्नेह और प्रेम से अक्षर उकेरती 
एक एक शब्द को अलंकारों से सजाती 
उस किताब में मेरे बाबूजी होते 
मेरी अम्मा होती 
उनका संघर्ष होता 
मेरे सहोदर भाई बहन होते 
उनका संवरा जीवन होता 
साथ हंसते और खिलखिलाते 
उसमें मेरा प्यारा बचपन होता
अल्हड़पन जवानी का होता
प्रोढ़ावस्था के सपने होते अपने बच्चों के लिए 
बच्चों को देखती अपने सपनों को साकार करते 
हमारा जीवन क्या बच्चों में ही जीवन हंसता - बसता है
उनको खुश देख मुस्कुरा लेती जी भर 
न जाने कितने जतन कर और सोच सोच कर लिखती 
हर पन्ना मेरे लिए अमूल्य होता 
बडी मेहनत लगती है 
ऐसी किताब लिखने में 
सालों गुजर जाते हैं 
बचपन बीत जाता है
जवानी चली जाती है
बुढ़ापा दस्तक देने लगता है
तभी लगता है
अभी तो किताब अधूरी है
कितना कुछ लिखना था
कितना कुछ छूट गया 
कितना कुछ भूल गया 
समय भी बीत गया 
किताब लिखना जारी है 
समझ नहीं आया जो लिखा सही लिखा 
क्या गलत लिखा 
वह मिटाया जा सकेगा या नहीं 

खैर जिंदगी न तू एक किताब है
न तुझे लिखने का अधिकार मेरे हाथ में है
जो समझ आया वह लिखा 
बाकी सब उसने किया 
कहने को जिंदगी हमारी
पर कहाँ वह हमारे वश में है
नियति के खेल निराले 
जो चाहे वह करा ले 

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