तब - तब एक और चेहरा याद आता है
वह है मां का
हर वक्त उन्हें रोते देखा है
सुख हो या दुख
पता ही नहीं चला
खुशी हो या वेदना
सबसे बड़ा हथियार था उनका
ऑसू गिरे कि हम पिघले
न कभी डांटा न मारा
गजब की शक्ति थी उनके ऑसू में
अब तो आदत सी हो गई है
फिर भी ऑसू अच्छे नहीं लगते
सोचते हैं यह तो नार्मल है
न रोए तब आश्चर्य हो
रोने के साथ मां का चोली - दामन का साथ रहा है
इसके बल पर सब पार किया है
रोना भी हथियार है यह तो मां से ही पता चला
वैसे हमारी ऑख में ऑसू जल्दी नहीं आते
आते हैं तो भी अकेले रात के अंधेरे में
दिल तो दुखता है पर सबको ऑसू साथ नहीं देते
बरसात भी तो बरसती है
सबके लिए अलग-अलग
नदी के लिए कुछ तलाब को लिए कुछ
गड्ढों - नालों के लिए कुछ
किसी को दुलराती है
किसी को डुबोती है
बारिश और ऑसू का भेद सब नहीं जान सकते
No comments:
Post a Comment