Friday, 17 January 2025

मेरे चाचा

कभी-कभार लगता है यह होना भी ठीक है । मैं अपने परिचित के घर गई थी । दो दिन उनके यहां ठहरी थी कुछ काम के सिलसिले में । वे रिश्ते में चाचा लगते हैं बड़े खुशमिजाज और शानदार व्यक्तित्व के मालिक । किसी का भी स्वागत दिल खोलकर । मिलनसारिता के अद्भुत मिसाल 
मार्डन विचारधारा और शिक्षित 
मैं जब छोटी थी तो इतनी समझ नहीं थी । चाची को कहती थी ये तो मेरे चाचा के लायक नहीं है क्योंकि चाची सांवली भी थी ।वे बुरा नहीं मानती थी हंसकर कहती थी 
हां बछिया हमके घुरे में फेंक आवा
अब हंसी आती है कि रंग भेद से कितना ग्रसित है हम ।
गोवा रंग सर्व गुण संपन्नता का प्रमाण तो नहीं
खैर वह तो बचपन की बात रही
चाचा की विगत कुछ सालों से सुनने की शक्ति क्षीण हो गई है
हम कुछ कहना चाहते हैं वे सुन नहीं पाते 
आदमी जब सुनने में असमर्थ हो जाए तो बातचीत और विचार का आदान-प्रदान भी मुश्किल 
कई बार लाचारी से कहते हैं 
क्या करु मजबूर हो गया हूँ 
दुख होता है देखकर 
इस बार बात चल रही थी 
औरतों को आदत होती पुराने बीती को कहने की
चाची ने कुछ गुस्से में उनपर पिछली बातों का ताना मारा
वे कहकर अंदर चली गईं 
चाचा हंसकर बोलते हैं 
अच्छा है सुनाई नहीं पड़ रहा न समझ आया
कैसी विडंबना है कि 
अब इसको भी स्वीकार कर लेना 
सही है जब व्यक्ति कुछ नहीं कर पाता तब कहता है 
जो भी है अच्छा है 

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