Saturday, 18 January 2025

हरदम याद रहे

पानी पत्थर पर निशान छोड़ गया
बरखा की कुछ मिट्टी को अंदर तक भिगा गई
उसका सीना चीर उसमें से हरियाली निकाल लाई 
बंजर और शुष्क धरती भी ऊपजाऊ हो लहलहा उठी
उर्जावान- उर्वरक हो गई 
लगी बांटने पूर्ण मन से 
कठोरता को कोमलता पीछे छोड़ गई 
उससे बाजी मार ले गई 
पत्थर ने पानी पर निशान न छोड़ा 
पानी ने ऐसा छोड़ा 
हरदम याद रहे ऐसा

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