Wednesday, 22 January 2025

चलायमान

मैंने चलना सीखा धीरे धीरे 
गिरता रहा 
उठता रहा
बैठा नहीं बस चलता रहा
कुछ कदम ही सही
कभी इच्छा से 
कभी मजबूरी में
धीरे धीरे आगे बढ़ा
बेशक कुछ मुझसे बहुत आगे निकल गये
कुछ थक हार बैठ गए 
मैं नहीं रुका
चलने के सिवा कुछ था भी नहीं
आज भी चल ही रहा हूँ 
फर्क इतना सा
तब मजबूत आज कमजोर 
पैरों में शिथिलता 
हां एक बात अवश्य 
चलना नहीं छोड़ा मैंने 
विश्वास है 
जब तक जान 
तब तक चलायमान 

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