गिरता रहा
उठता रहा
बैठा नहीं बस चलता रहा
कुछ कदम ही सही
कभी इच्छा से
कभी मजबूरी में
धीरे धीरे आगे बढ़ा
बेशक कुछ मुझसे बहुत आगे निकल गये
कुछ थक हार बैठ गए
मैं नहीं रुका
चलने के सिवा कुछ था भी नहीं
आज भी चल ही रहा हूँ
फर्क इतना सा
तब मजबूत आज कमजोर
पैरों में शिथिलता
हां एक बात अवश्य
चलना नहीं छोड़ा मैंने
विश्वास है
जब तक जान
तब तक चलायमान
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