जो हम होते थे कभी
बदलते रहे स्वयं को
कभी दूसरों की खातिर
कभी मजबूरी में
कभी परिस्थितिवश
इस बदलने की प्रक्रिया में कितना कुछ बदल गया
हमें एहसास ही नहीं हुआ
आज सोचा तो लगा
हम वही तो नहीं
गुरुर तो जाने कहाँ गायब
करते तो किस पर
स्वाभिमान के तो परख्च्चे उड़ते रहें
हम मन मसोस कर देखते रह गए
सबको खुश करने के चक्कर में
न खुद खुश रह पाए
न कोई और रह पाया
अब बदलना भी नहीं है
न बदला लेना है
हम जैसे हैं वैसे हैं
जिसको हमसे है गिला
न रखें हमसे कोई वास्ता
इसके सिवा कहने को हमारे पास कुछ नहीं
तुम खुश रहो यही दुआ है
हम भी खुश हो जाएगे
सबको देखकर दूर से ही मुस्कराएंगे
No comments:
Post a Comment