Friday, 31 January 2025

आदमी एक खिलौना है

आदमी एक खिलौना है
आना और जाना है 
नहीं यहाँ ठहरना है 
जब तक हवा भरी है
तब तक फूला है
बाद में फुस्स हो जाना है 
नहीं रह जाता कुछ भी 
न साथ कुछ जाता
अकेले आया था
अकेले ही जाना है
यह वह जानता है
तब भी भीड़ का हिस्सा रहता है
जकड़ा रहता उलझनों में
ताउम्र सुलझाता रहता है
सुलझते सुलझते उलझ जाते हैं
फिर वही सब दोहराता है
एक दिन सब छोड़ चला जाता है 

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