Tuesday, 7 January 2025

शायद यही संसार है

मैंने कुछ कहा
उन्होंने कुछ समझा
कोई  समझने को तैयार नहीं 
आखिर हार मान स्वयं चुप हो गई 
सब समय पर छोड़ दिया
ऐसी भी स्थिति आती है
कभी-कभार निर्दोष भी दंड भुगतते हैं
वह गलती तुमने की ही नहीं फिर भी गलत ठहरना
क्या करें 
बड़ी असमंजस की स्थिति
दूसरों से लड़ भी लें 
अपनों का मुकाबला कैसे करें 
बोल कर नाता तोड़े 
मुख पर लगाम लगा कर रहें 
मूकदर्शक बने रहें 
शायद यही संसार है 

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