Wednesday, 19 February 2025

बस यादें रह जानी है

कुछ तो बोलो 
कितना चुप रहते हो 
जरा बैठ बतियायों 
कुछ गुफ्तगू करो 
कुछ अपनी कहो कुछ हमारी सुनो 
कभी तो खिलखिलाकर हंसो 
चेहरे पर मुस्कान बिखेरो  
इतनी चुप्पी ठीक नहीं
कब तक मन को दबाकर रखोगे 
जरा मन खोलकर तो देखो 
कितना सुकून मिलता है 
कितना भावनाओं को छिपाओगे 
जरा भावनाओं को बहने तो दो 
उनको दबाना ठीक नहीं 
नासूर बन जाएगा 
क्या फायदा वैसे प्रेम का 
मन में तो भरा है 
उसका इजहार करना नहीं आता 
अब तो छोड़ो सब
जीवन को खुलकर जी लो 
पता नहीं कितने दिन रहना है 
कुछ प्यारे पलों को याद कर लो 
अपनों में प्यार बांट लो 
बस बाद में तो यह यादें रह जानी है 

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