कितना चुप रहते हो
जरा बैठ बतियायों
कुछ गुफ्तगू करो
कुछ अपनी कहो कुछ हमारी सुनो
कभी तो खिलखिलाकर हंसो
चेहरे पर मुस्कान बिखेरो
इतनी चुप्पी ठीक नहीं
कब तक मन को दबाकर रखोगे
जरा मन खोलकर तो देखो
कितना सुकून मिलता है
कितना भावनाओं को छिपाओगे
जरा भावनाओं को बहने तो दो
उनको दबाना ठीक नहीं
नासूर बन जाएगा
क्या फायदा वैसे प्रेम का
मन में तो भरा है
उसका इजहार करना नहीं आता
अब तो छोड़ो सब
जीवन को खुलकर जी लो
पता नहीं कितने दिन रहना है
कुछ प्यारे पलों को याद कर लो
अपनों में प्यार बांट लो
बस बाद में तो यह यादें रह जानी है
No comments:
Post a Comment