छोटी जाति और कुल
भक्ति में लीन
बरसों किया राम का इंतजार
हर रोज स्वागत की तैयारी
बुहारती पोछती सजाती कुटिया
फूलों को बिछाती राह में
कभी न हार मानी
न कभी आलस किया
बस आशा लगाई और प्रतीक्षा की
पगली समझी गई
हंसी उड़ाई गई
पर वह न डगमगाई
विश्वास जो था अपने प्रभु पर
बचपन से बुढ़ापा आ गया
शबरी की सोच नहीं बदली
अगर सीता का हरण नहीं होता तो
शबरी की प्रतीक्षा व्यर्थ जाती
नहीं कभी नहीं
राम को तो हर हाल में आना था
उत्तर से दक्षिण उस बूढ़ी माई से मिलने
विश्वास जो था उस भक्त का
उसको कैसे तोड़ते
उसके जूठे बेरों को खाना था
कौन इतने प्रेम से उनको अपना जूठा खिलाता
बड़े - बड़े पकवानों का भोग में वह स्वाद कहाँ
लोग कुछ समय इंतजार नहीं कर सकते
शबरी ने तो पूरी उम्र उसी में गुजार दी
बस मेरे राम आएगे
शबरी राम को ढूँढने नहीं गई
राम को ढूँढते हुए आना पड़ा
वह अपनी कुटिया में बाट जोहती रही
सही भी है
कहते हैं ना
कौन कहता भगवान आते नहीं
शबरी सा तुम बुलाओ तो सही
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