Sunday, 2 February 2025

हंसी उसकी

वह आज बहुत हंस रही थी
बात - बात पर खिलखिला रही थी 
ऐसी कौन सी खुशी हासिल हुई थी
समझने की कोशिश में लगी थी
खुश थी वास्तव में 
या दर्द को छिपाने की कोशिश कर रही थी
हर हंसी खुशी की नहीं होती
पूछा तो टाल दिया
बस ऐसे ही हंसने का मन हुआ 
खुश रहना चाहिए 
हर दम हंसते रहना चाहिए 
कहते - कहते ऑखों के कोरे भीग गए 
न जाने कहाँ से आँसू की एक बूंद टपक पड़ी 
छिपाकर पोछना चाहा 
मैंने हाथ पकड़कर कहा 
मत पोछो न छिपाओ 
बह जाने दो 
रोने में क्या शर्माना 
सब बारी- बारी से रोते हैं
यह बात सुनते ही वह रोते - रोते हंस पड़ी 
साथ में हंसते हुए मैं बोली 
यह हुई न बात
अबकी हंसी सच्ची थी बनावटी नहीं 

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