Sunday, 2 February 2025

चंदा और तारें

तारों के बीच एक चंदा रहता है 
वही उनको अपना लगता है 
लेकिन वह भी कहाँ एक जगह टिकता है
कभी यहाँ कभी वहाँ बस डोलता फिरता है
अपने आकार बदलता रहता है 
कभी छोटा कभी बड़ा 
कभी आधा कभी पूरा 
कभी छिपता कभी दिखता 
उस पर भी अमावस आती है 
ग्रहण लगता है 
दुख तारों को भी होता है
वे तो उसे पास और पूर्ण देखना चाहते हैं
अंधेरे से दूर रखना चाहते हैं
पर करें तो करें क्या
बस टिमटिमा सकते हैं 
कोशिश भरपूर करते हैं 
पर कहाँ पास रख पाते हैं 
कभी - कभी तो वे भी टूट जाते हैं
चंदा को तो कोई फर्क नहीं पड़ता 
तारों को तो पड़ता है 
प्रेम जो उससे करते हैं

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