चरण स्पर्श कर लिया फिर मजाक उड़ाया
ऐसे सम्मान का क्या फायदा
जहॉ सम्मान मन से न हो वहॉं से हट जाना ही बेहतर
रिश्ता अपनी हैसियत वाले लोगों से ही रखना चाहिए बड़े लोगों से रख अपना ही अस्तित्व समाप्त करने जरूरत नहीं है
लाचार और उपहास का पात्र बनने के अलावा कुछ हासिल नहीं
समाज में हैसियत देख रिएक्शन होता है
डार्विन की थ्योरी लागू होती है
शक्तिशाली बनो स्वयं और आत्मनिर्भर भी
एहसान का एहसास ताउम्र झेलना आसान नहीं होता
लोग समय-समय पर दंश चुभाते रहेगे , जताते रहेगे
अपना याद रहता है आपका याद नहीं रखेंगे
यह सिलसिला चलता रहेगा कम से कम दो पीढ़ी तक
उनकी औलाद भी यही सोचती रहेंगी
आपके साथ आपके बच्चों को भी उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी
वहाँ कभी जाना नहीं जो कहने को होते तो है अपने लेकिन रहते हैं अजनबियों सा
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