Tuesday, 22 July 2025

चलने का सिलसिला

मैं तो चल पड़ा था अपनी मंजिल की तरफ
हवा भी संग संग चलती रही 
कभी धीमी कभी तेज 
कभी अनुकूल कभी प्रतिकूल
कभी-कभार धीमे से सहलाती 
सुंगध से सराबोर कर देती 
कभी जोरदार थपेड़ा मारती 
मैं थक हार कर बैठ जाता 
कुछ वक्त बाद फिर उठ जाता 
उसके साथ- साथ चल देता 
हार मैंने मानी नहीं 
वह भी रूकी नहीं 
अपनी गति से चलती रही 
हममें होड़ लगी थी मानो 
न मुझे हार माननी थी 
न वह रूकने वाली थी 
आखिर साथ- साथ चलते हम दोनों में दोस्ती हो गई 
वह अपनी धुन में मैं अपनी धुन में 
यह सिलसिला जारी है 


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