जो बिना बात पर भी ठठाकर हंसता था
डांट भी पड़ती थी पर आदत से बाज नहीं आता था
हंसी का न कोई ओर - छोर होता
कई बार लोग पागल भी समझते
अचानक समय ने करवट बदली
हंसी धीरे - धीरे गायब होने लगी
समझ में आ गया
हमेशा हंसना ठीक नहीं
उसका लोग अलग मतलब निकाल लेते हैं
परिस्थितियों ने ऐसा बना दिया
हंसने से पहले सोचना पड़ता है
सालोंसाल यही सिलसिला चलता रहा
अब उसकी आदत हो गई है
तब लोग कहते हैं
हंसा करों
खुश रहा करों
बिना कारण अपने आप हंसो
आदत छूट गई है
अब नहीं आती हंसी
वह भोलापन और मासूमियत कहीं खो गई
समय के थपेड़ों ने सब हंसी छीन ली
कभी ठठाने वाला आज मुस्कान भी बड़ी मुश्किल से ले आता
वह शख्स अब ढूंढे से नहीं मिलता
हां वह जमाना याद आता है तब मुस्कराकर रह जाते हैं
वह भी एक दौर था
अब भी एक दौर है
गुजरता जा रहा इनमें से जो वहीं तो जीवन है
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