Saturday, 23 August 2025

जीना तो अभी है

किचन में खड़ी चाय बना रही थी 
न जाने कौन सी तंद्रा मे खोई थी 
विचारों का समुद्र मंथन कर रहा था 
चाय उबाल मारने लगी 
अचानक याद आया 
अदरक और ईलायची का 
झटपट डाल लिया 
दूध और शक्कर मिला कप में छान लिया 
दो बिस्कुट और नमकीन लेकर बैठ आस्वाद लिया 
यही तो जिंदगी है 
उबाल तो आते रहेंगे 
उसको स्वादिष्ट बनाने के लिए बहुत कुछ की जरूरत होती है 
सब को मिलाइए 
चुस्कियां ले कर पीए 
चाय की तरह जिंदगी जीएं 
बाद में तो छनना ही है 
सब खत्म होना है 
जब तक ताजा है तब तक
बासी हो जाने पर कोई फायदा नहीं 
उम्र है तो उसे अपने अनुसार ढाल ले 
गुजर जाने पर तो बुढ़ापा को देख काटना है 
जीना तो अभी है 

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