मत निराश हो
समय जरुर बदलता है
बारह साल बाद तो घूरे के दिन भी फिरते हैं
मैं भी सोचता रहा
क्या सच में ??
सबने मुझे घूरा ही समझा
न जाने क्या-कुछ नहीं किया - कहा
मैं सहता रहा
लड़ता रहा
कभी बाहर कभी अंदर
नियति का खेल देखता रहा
कर्म करता रहा
हिम्मत नहीं हारी न हारूंगा
विश्वास है आशा है
परिस्थितियां जरूर बदलेगी
मैं बैठा नहीं हारकर
आखिर जिंदगी भी तो भरोसे पर ही टिकी है
अपना भी वक्त आएंगा
कब यह तो पता नहीं
तब तक चलना ही है
घूरे के दिन भी फिरते हैं तो अपना क्यों नहीं
वह भी तो कचरे से एक दिन खाद बन जाता है
उसका भी मोल हो जाता है
तब तो हम मानव है
सबसे अनमोल हैं
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