Friday, 8 August 2025

घूरे के दिन भी तो फिरते हैं

माॅ कहती थी 
मत निराश हो 
समय जरुर बदलता है 
बारह साल बाद तो घूरे के दिन भी फिरते हैं 
मैं भी सोचता रहा 
क्या सच में ?? 
सबने मुझे घूरा ही समझा 
न जाने क्या-कुछ नहीं किया - कहा
मैं सहता रहा 
लड़ता रहा 
कभी बाहर कभी अंदर
नियति का खेल देखता रहा 
कर्म करता रहा 
हिम्मत नहीं हारी न हारूंगा 
विश्वास है आशा है
परिस्थितियां जरूर बदलेगी 
मैं बैठा नहीं हारकर 
आखिर जिंदगी भी तो भरोसे पर ही टिकी है 
अपना भी वक्त आएंगा 
कब यह तो पता नहीं 
तब तक चलना ही है 
घूरे के दिन भी फिरते हैं तो अपना क्यों नहीं 
वह भी तो कचरे से एक दिन खाद बन जाता है 
उसका भी मोल हो जाता है 
तब तो हम मानव है 
सबसे अनमोल हैं 


No comments:

Post a Comment