वह कब तक सहन करेंगी
आप खोदते रहोगे
तोड़ते रहोगे
वह घायल होती रहेंगी
सिसकियाँ भरती रहेंगी
आप उस पर आलीशान होटल बनाओगे
बंगले और होम स्टे बनाओगे
मौज - मजा करोगे
वह तो निहारने के लिए है
सौंदर्य का आस्वादन लेने के लिए हैं
न जाने कितनी बड़ी दाता है
लेकिन उसकी भी एक सीमा है
वह भी रौद्र रूप धारण कर सकती है
उसकी एक करवट सब कुछ तहस - नहस कर देती है
पूरा का पूरा शहर लील लेती है
फिर जमीन पर ला पटकती है
बड़ा भयावह मंजर होता है
सब कुछ एक झटके में खत्म
सदियों लग जाएंगे संवरने में
तब भी सामान्य नहीं हो पाएगा कुछ
अपनों को जिसने खोया है
वह तो आने से रहें
बरसों की मेहनत पर पानी फिर गया
कैसे रहेंगे वे
फिर से अपने को स्थापित करेंगे
वे वहाँ के स्थानीय लोग हैं
प्रकृति ने अपनी गोद में ले उन्हें दुलराया है
उसे छोड़कर कहाँ जाएंगे
डर लगता है
क्या यहीं जीवन है
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