Friday, 8 August 2025

प्रकृति का प्रकोप

मत छेड़ो प्रकृति को 
वह कब तक सहन करेंगी 
आप खोदते रहोगे 
तोड़ते रहोगे 
वह घायल होती रहेंगी 
सिसकियाँ भरती रहेंगी 
आप उस पर आलीशान होटल बनाओगे 
बंगले और होम स्टे बनाओगे 
मौज - मजा करोगे 
वह तो निहारने के लिए है 
सौंदर्य का आस्वादन लेने के लिए हैं 
न जाने कितनी बड़ी दाता है 
लेकिन उसकी भी एक सीमा है 
वह भी रौद्र रूप धारण कर सकती है 
उसकी एक करवट सब कुछ तहस - नहस कर देती है 
पूरा का पूरा शहर लील लेती है 
फिर जमीन पर ला पटकती है 
बड़ा भयावह मंजर होता है 
सब कुछ एक झटके में खत्म 
सदियों लग जाएंगे संवरने में 
तब भी सामान्य नहीं हो पाएगा कुछ 
अपनों को जिसने खोया है 
वह तो आने से रहें 
बरसों की मेहनत पर पानी फिर गया 
कैसे रहेंगे वे 
फिर से अपने को स्थापित करेंगे 
वे वहाँ के स्थानीय लोग हैं 
प्रकृति ने अपनी गोद में ले उन्हें दुलराया है 
उसे छोड़कर कहाँ जाएंगे 
डर लगता है 
क्या यहीं जीवन है 

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