जिनकी वजह से हम
उनका ही अंश
देखा तो नहीं सबको
पर हमारी हर आदत में शुमार
कोई किसी के जैसा
किसी न किसी से अंग का हर भाग मिलता
कभी ऑख कभी माथा कभी नाक
कभी विचार तो कभी बुद्धि
वे न होते तो हम कैसे होते
उपकार है जीवन देने का
सब कुछ हमारे लिए छोड़ जाने का
चले गए फिर भी आशीष देने आते
एक पक्ष तो उनका
वहाँ भी चैन नहीं उन्हें
हमको देखना है हंसते - खेलते
अपनी वंश बेल बढ़ते
स्वर्ग में भी आपस में बतियाते होगे
आए है तो
कर लो उनसे प्रार्थना
गलती- भूल - चूक की माफी मांग लो
आशीष भी ले लो
याद कर लो
उनका उपकार है
कर्ज है
उसका एहसास रहें
अपने लोगों को याद कर लो
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