फिर क्या
देखते देखते कूड़े का पहाड़ बन चुका था
सबको वही जगह दिखने लगी
ऐसा ही जीवन में भी होता है
किसी एक ने तुममें कमी देखी
तब हर कोई तुममें कमियां निकालते रहता है
चाहे वह अपने लाख बुरा हो
यही फितरत है
टूटे हुए को और तोड़ना
कुरेद कुरेद कर निकालना
पता नहीं क्या मिलता है
मजा आता होगा शायद
अपने में झांक कर देखा नहीं होगा
बुरा जो देखा मैं चला
मुझसे बुरा न कोई
समाज है ना
कुछ तो दिमाग में डालना है
चाहे वह कूड़ा ही क्यों न हो
कूड़ा भर लेंगे
फिर उसकी गंदगी यहाँ- वहाँ फैलाते रहेंगे
चुगली - निंदा करते रहेंगे
आप जो नहीं जानते हैं अपने बारे में
वह भी वे जानते होंगे
बहती गंगा में हाथ धोने वाले भी बहुतेरे
चलो हम भी कुछ जोड़ देते हैं
साथ में हंस भी लेते हैं
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