Sunday, 15 June 2014

MERI PYARI MAA

माँ क्या होती है यह जाना तुमसे,अपने बच्चो को प्यार दुलार देने वाली,
हर वख्त में उनके साथ कड़ी रहने वाली ,हर संकट को स्वयं पर झेलने वाली,
चाहे गरजते बादल हो या कड़कती बिजली ,हर झंझावात को मात देने वाली ,
इतनी शक्ति कहाँ  से आयी कभी हार मानते हुए नहीं देखा
वर्ष पे वर्ष गुजरते गए कभी ध्यान से नहीं देखा तुम्हे,
हमेशा अपने जरुरतो की पूर्ति कराती रही तुमसे ,हमेशा कुछ न कुछ अपेक्षा ही रही तुमसे
मेरे जीवन को आसान बना दिया तुमने,कभी किसी तकलीफ का एहसास नहीं होने दिया तुमने
तुम पर अपना हक़ जताती रही,अपनी हर बात मनवाती रही
लेकिन अचानक तुम्हे  देख मन के किसी कोने में भयंकर पीड़ा हुई
यह वही स्त्री है जो चट्टान क सामने भी तनकर खड़ी होजाती थी
आज शरीर अशक्त होगया है चलना उठना बैठना भरी होगया है ,
श्रवण शक्ति कम होगयी है,मन भी बुझ सा गया है
कैसे खत्म होगयी तुम्हारी यह जिजीविषा,कैसे इतनी कमज़ोर होगयी तुम
तुम्हारे इस रूप को मन स्वीकार नहीं कर पा रहा


                       

वर्षो तक घर बाल-बच्चे संभालती रही ,नाते रिश्तेदारों को प्यार बांटती रही ,
कभी किसी को भार नहीं समझा ,सेवा-दया ,ममता ,स्वाभिमान की मूर्ति
आज भी वह कायम है पर शरीर साथ छोड़ रहा है ,दुखी मत हो स्वीकार करो ,
इस दिन को भी आना था समय तोह किसी का नहीं होता तोह तुम्हारा कैसे होगा ,
यही तो जीवन है ,आज जहा तुम कड़ी हो कल शायद मैं वाहा होउंगी ,
क्या होगा कैसे होगा चिंतित  हू मन दुविधा में पड़ा हुआ है
फिर भी आज भी अपेक्षा है तुमसे क्योंकि तुम तो माँ हो,
माँ हमेशा बच्चो के लिए हे होती है ,बच्चे उनके लिए हो या न हो।
                                         
                                       
                                           

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