कहा जाता है जो बीत गयी वो बात गयी ,जो हुआ उसे भूल जाओ ,पर भूलना इतना आसान है क्या ?
कितनी भी उचाई पर पहुंच जाये ,सबकुछ पा ले पर अतीत तो हमारा पीछा नहीं छोड़ता है ,अगर मधुर स्मृतियों के सहारे जीवन जिया जा सकता है तो कटु स्मृतियाँ भी हमारा पीछा नहीं छोड़ती,
अगर भूलना इतना आसान होता तो हस्तिनापुर की महारानी ,पांच पांडव की पांचाली ,अपना अपमान कबका भूल चुकी होती लेकिन उस अपमान की ज्वाला तो दुशासन के रख्तपन से भी शांत नहीं हुई
महाभारत तो होकर ही रहा और विनाश भी हुआ पर मन की ज्वाला धधकती रही,न धृतरास्ट् भूले अपने अंधे पन के कारन सिहासन छिन जाना ,न गंधारी भूली अंधे के साथ विवाहसम्बन्ध ,न गान्धारनरेश शकुनि सेह पाये बहन के साथ हुआ अन्याय ,न दुर्योधन सेह पाया द्रौपदी का पिता के अंधेपन पर व्यंग बाण
पांच बलशाली पुत्रों की माँ कुंती ने दुःख का वरदान माँगा कृष्ण से ,बड़े बेटे सूर्यपुत्र के अलगाव ने कभी सुखी होने नहीं दिया,और बचे महारथी ,महाबलशाली ,दानवीर कर्ण,सबको दान देकर सुखी करते रहे पर स्वयं हमेशा अपमान की पीड़ा में जलते रहे ।
यह केवल महाभारत की कथा नहीं ,हम साधारण मनुष्यो की भी यही बात है ,हम भूल सकते है शायद नहीं ?
फिर भी दिखावा करते रहते है ,महान बनने की कोशिश करते रहते है ,क्योंकि केवल इसीलिए की ये लोग हमारे अपने है , कही ना कही किसी न किसी तरह से हमसे जुड़े हुए है ,इनके दुःख से हम दुखी होते है इनके सुख में खुश पर मन कहीं न कहीं सालता रहता है ,कब तक ये व्यथा पीड़ा सहते रहेंगे इनसे अलग होना क्या इतना आसान है हम हो हे नहीं सकते ,जी ही नहीं सकते ,रही दुसरो की बात ,वे हमारे अपने नहीं फिर उनका दुःख क्यों?उन्हें तो हम छोड़ सकते है ,पर यह भी मुमकिन नहीं ,आखिर क्यों?
हम समाज में रहते उस समाज में जहा तुम्हारे दुःख से लोग खुश होते है ,तुम्हारे सुख से जलते है केवल इसीलिए की वे हमारे दुःख में सहानभूति दिखाएंगे ,तीज त्यौहार पर मिलने आएंगे या चार कंधो पर अर्थी जा रही हो तो इकठ्ठा होकर याद करेंगे ,हम इनसे जुड़े रहते है वर्ष दर वर्ष प्रतीक्षा करते रहते है ,खुशियां और दुःख बाटने की कोशिश करते रहते है ,परिणाम आखिर क्या ?ये कब और क्यों टूट जाये कहा नहीं जा सकता
रिश्ते,नाते,प्यार,दोस्ती,वफ़ा सब यही के यही रह जाते है कोई किसी का नहीं रहता सम्बन्ध पुराने पढ़ जाते है,
टूट जाते है ,फिर हम अपनी जिंदगी क्यों नहीं जी पाते जैसे को तैसा बनकर क्यों नहीं दिखाते ,क्यों अच्छाई का मुखोटा पहने रहते है ,अपने मन को तकलीफ देते रहते है,क्यों दुसरो की परवाह करते है ।क्या हम इतने निर्बल कमज़ोर है ?पता है की अपना रास्ता ,मंज़िल हमें स्वयं ढूंढ ना है,फिर किसके सहारे क्यों बैठना।
यह संसार भी एक महाभारत है और हम इस युद्ध के भागीदार है।
कितनी भी उचाई पर पहुंच जाये ,सबकुछ पा ले पर अतीत तो हमारा पीछा नहीं छोड़ता है ,अगर मधुर स्मृतियों के सहारे जीवन जिया जा सकता है तो कटु स्मृतियाँ भी हमारा पीछा नहीं छोड़ती,
अगर भूलना इतना आसान होता तो हस्तिनापुर की महारानी ,पांच पांडव की पांचाली ,अपना अपमान कबका भूल चुकी होती लेकिन उस अपमान की ज्वाला तो दुशासन के रख्तपन से भी शांत नहीं हुई
महाभारत तो होकर ही रहा और विनाश भी हुआ पर मन की ज्वाला धधकती रही,न धृतरास्ट् भूले अपने अंधे पन के कारन सिहासन छिन जाना ,न गंधारी भूली अंधे के साथ विवाहसम्बन्ध ,न गान्धारनरेश शकुनि सेह पाये बहन के साथ हुआ अन्याय ,न दुर्योधन सेह पाया द्रौपदी का पिता के अंधेपन पर व्यंग बाण
पांच बलशाली पुत्रों की माँ कुंती ने दुःख का वरदान माँगा कृष्ण से ,बड़े बेटे सूर्यपुत्र के अलगाव ने कभी सुखी होने नहीं दिया,और बचे महारथी ,महाबलशाली ,दानवीर कर्ण,सबको दान देकर सुखी करते रहे पर स्वयं हमेशा अपमान की पीड़ा में जलते रहे ।
यह केवल महाभारत की कथा नहीं ,हम साधारण मनुष्यो की भी यही बात है ,हम भूल सकते है शायद नहीं ?
फिर भी दिखावा करते रहते है ,महान बनने की कोशिश करते रहते है ,क्योंकि केवल इसीलिए की ये लोग हमारे अपने है , कही ना कही किसी न किसी तरह से हमसे जुड़े हुए है ,इनके दुःख से हम दुखी होते है इनके सुख में खुश पर मन कहीं न कहीं सालता रहता है ,कब तक ये व्यथा पीड़ा सहते रहेंगे इनसे अलग होना क्या इतना आसान है हम हो हे नहीं सकते ,जी ही नहीं सकते ,रही दुसरो की बात ,वे हमारे अपने नहीं फिर उनका दुःख क्यों?उन्हें तो हम छोड़ सकते है ,पर यह भी मुमकिन नहीं ,आखिर क्यों?
हम समाज में रहते उस समाज में जहा तुम्हारे दुःख से लोग खुश होते है ,तुम्हारे सुख से जलते है केवल इसीलिए की वे हमारे दुःख में सहानभूति दिखाएंगे ,तीज त्यौहार पर मिलने आएंगे या चार कंधो पर अर्थी जा रही हो तो इकठ्ठा होकर याद करेंगे ,हम इनसे जुड़े रहते है वर्ष दर वर्ष प्रतीक्षा करते रहते है ,खुशियां और दुःख बाटने की कोशिश करते रहते है ,परिणाम आखिर क्या ?ये कब और क्यों टूट जाये कहा नहीं जा सकता
रिश्ते,नाते,प्यार,दोस्ती,वफ़ा सब यही के यही रह जाते है कोई किसी का नहीं रहता सम्बन्ध पुराने पढ़ जाते है,
टूट जाते है ,फिर हम अपनी जिंदगी क्यों नहीं जी पाते जैसे को तैसा बनकर क्यों नहीं दिखाते ,क्यों अच्छाई का मुखोटा पहने रहते है ,अपने मन को तकलीफ देते रहते है,क्यों दुसरो की परवाह करते है ।क्या हम इतने निर्बल कमज़ोर है ?पता है की अपना रास्ता ,मंज़िल हमें स्वयं ढूंढ ना है,फिर किसके सहारे क्यों बैठना।
यह संसार भी एक महाभारत है और हम इस युद्ध के भागीदार है।
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