Monday, 28 July 2014

अन्नदान सबसे बड़ा पुण्य है।

पूर्वजो ने कहा हैं कि अन्न का अपमान नहीं करना चाहिए , लेकिन आज भोजन को इतना व्यर्थ करते है कि पूछो मत। शादी - ब्याह में पहले पंगत में बैठ कर खाना होता था तो व्यक्ति को जितनी जरूरत होती थी उतना परोसा जाता था। आज बुफे सिस्टम जिसमे कि अपनी इच्छा अनुसार लो। लोग लालच में पूरी की पूरी प्लेट भर तो लेते है पर खा नहीं जाता तो फेक देते है। रास्ते पर , सोसाइटी में कही रोटी तो कही चावल या अन्य खाद्य पदार्थ यहाँ - वहाँ फेके दिखाई देते है। उत्तर भारत में जो जूठन होती है वह नाले में ना बहा कर पशु की हौदी में डाला जाता है। किसान कि औरत गेहू के दस दाने गिरे हो तो भी चुन कर रख लेती है क्यूंकि उसको अन्न का मतलब पता है। 

अधिकाँश शहरों में यह दिखाई देता है। अभी कुछ लोगो ने मुहीम छेड़ी है और वे इसमें कामयाब भी हुए है। वे ऑफिस में जो डब्बा जाता है उसका बचा हुआ भोजन और होटलों के बचे हुए भोजन को रेफ्रीजिरेटर में इकठ्ठा करते है। बाद में उसे गरीब और जरूरतमंद लोगो में बाटने का काम करते है। अतः आप भी अपना अन्न फेंकिए मत , उसका उपयोग किसीका पेट भरने में कीजिये। आप का भोजन किसी जरूरतमंद का पेट भर सकता है। उसके चेहरे की मुस्कराहट और संतुष्टि से बड़ा पुण्य क्या हो सकता है।




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