आए दिन अखबारों में, टीवी चैनेलो पर भ्रूण ह्त्या की खबर प्रकाशित होती रहती है। अब तो एक केंद्रीय मंत्री ने भी कह दिया कि उनको भी गर्भ में मार ने की सलाह दी गयी थी । भ्रूण हत्या के कारणों की तह में जाना होगा। लड़की को ही मार ने की बात क्यों की जाती है? क्या लड़की से माँ-बाप प्यार नहीं करते? संतान बेटा हो या बेटी, दोनों ही प्यारे होते है, लेकिन सामाजिक समस्या आड़े आ जाती है. लड़की के ब्याह की समस्या, दुनिया की बुरी नज़रो से बचा कर रखना, बेटा आवारा निकल जाए तो कुछ नहीं लेकिन लड़की के साथ खानदान और इज़्ज़त जुडी हुई है, बेटी के ससुराल वालो के आगे झुकना, यहाँ तक की राजा जनक भी अपनी दुराली जानकी के स्वयंवर में सही पात्र न मिलने के कारण रो दिए थे।
आज कल बलात्कार की घटनाये बढ़ रही है, उसका एक कारण लिंग अनुपात में असमानता होना। लड़को के ब्याह नहीं हो रहे है, कुंवारों की फौंज कड़ी है। लडकिया हर मायने में आगे निकल रही है। यह उस पुरुष वादी मानसिकता को सहन नहीं हो रहा है। शादी के पहले पिता और बाद में पति की अवधारणा बदल रही है। आज लड़की परिवार पर बोझ नहीं बल्कि परिवार का बोझ संभाल रही है। समाज बदल रहा है, पर फिर भी बेटी के बाप को हमेशा डर लगा रहता है। चार बेटो की इतनी चिंता नहीं जितना एक बेटी की। हमारी लाड़ली सुरक्षित है या नहीं, ससुराल कैसा मिलेगा, दहेज़ जुटाना पड़ेगा यही सब चिंता सताती है इसलिए इस संसार में आने से पहले ही उसे मार कर उसकी तथा अपनी तकलीफो का अंत कर देते है।
अब समय आ गया है, यह धारणा, मानसिकता बदलनी होगी। बेटा ही नहीं बेटी भी हमारा आधार बन सकती है। समाज, सरकार, परिवार, माँ-बाप सभी इस पर विचार करे तो परिवर्तन होगा। हर जीव को जीने का अधिकार है और उससे यह अधिकार न छीना जाए, बेटी को भी है उतना ही हक़ जितना बेटो का।
"बेटा है एक परिवार का दीपक तो बेटियाँ सर्व समाज को प्रकाशित करती ज्योति "
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