Tuesday, 1 July 2014

Menhgai ki maar hai sab par bhari!!!

मंहगाई की मार पड़ी है सब पर भारी, क्या अमीर क्या गरीब सब है बेहाल,
सोचा था सरकार बदलेगी, अच्छे  दिन आएंगे, पर कहाँ ?
कांदा-बटाटा और टमाटर रुला रहे है , हरी-हरी सब्जिया देखो  संतोष करो,
फल की तो बात ही छोड़ो, उसकी औकात नहीं।

यात्र की तो भूल ही जाओ, किराया बढ गया दुगना,
रही-सही कसर पूरी  दी मौसम की  बेईमानी ने,
टकटकी लगाये सब बैठे है, क्या किसाम, क्या व्यापारी ?
आम आदमी तो उलझा हुआ है इन उलझनों में,

सोचने की फुर्सत नहीं उसके पास केवल दाल-रोटी के सिवाए,
इंतज़ार है तो केवल अच्छे दिन आने का,
बरसात, भगवान और सरकार,
इनपर निर्भर है आम इंसान।


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