गंगा तेरा पानी अमृत, झर - झर बहता जाए।
उसी गंगा को हमने क्या बना दिया ? राजा भगीरथ की तपस्या को भी व्यर्थ कर दिया।
गंगा को साफ़ करने की सरकार की मुहीम का स्वागत है।
लेकिन इन सब के लिए गंगा की अर्चना - पूजा करने वाले भी कम दोषी नहीं है।
मरे हुए पशु, अधजली लाश, मल - मूत्र, गंदे कपडे धोना, मुरझाए हुए हार फूल डालना।
क्या गंगा इन सबके लिए बनी है ? एक तरफ मल बह रहा है और दूसरी तरफ हम वही जल लेकर सूर्य को अर्पण करते है और आचमन करते है।
स्वर्ग में पहुचने की चाह में गंगा को यही नरक बना दे रहे है।
धर्मावलम्बियों को भी नए सिरे से सोचना होगा।
समय और परिस्तिथि के परिप्रेक्ष में धर्म के मायने समझना होगा।
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