Monday, 8 September 2014

गणपति बाप्पा मोरया।

गणपति बाप्पा आए और सब का विघ्न हर, सुख और समृद्धि का आशीर्वाद दे कर विदा हो गए। 
दस दिन तक उत्साह और रौनक का माहोल रहा। सब कोई व्यस्त, कोई घर में कोई पंडाल में। 
बाप्पा भी चाहते है की सब लोग सुखी और समृद्ध रहे, पर यह नागरिको की जिम्मेदारी नहीं क्या ?

भक्ति के नाम पर व्यवसाय चल रहा है, हर पंडाल में एक दूसरे से होड़ करने की प्रत्योगिता चल पड़ी है। 
बिजली का अप्वय, धव्नि - प्रदुषण, यातायात की परेशानी , असामाजिक तत्व और गर्दुल्लो का इधर - उधर भटकना, शराब पी कर विसर्जन करना, क्या यह उचित है ? 

दूसरे दिन समुद्र में मूर्तियों को देख मन दुखी हो जाता है। 
भक्ति, पूजा, साधना, में दिखावे का क्या काम ?


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