जम्मू - कश्मीर में बाढ़ आई है, प्रकृति का प्रकोप पुरे उफान पर है,
धरती का स्वर्ग आज नरक से भी बदतर हो गया है,
हजारो लोग बेघर-बार, मृत्यु के मुँह में चले गए है,
प्रकृति का तांडव जारी है।
ऐसे समय में राजनीति और मतभेद को भुला कर सबका मददत के लिए आना सराहनीय है,
" हम विभिन्न हो गए विनाश में, हम अभिन्न हो रहे विकास में,
एक श्रेय, प्रेम अब समान हो, शुद्ध, स्वार्थ से बचे, लोग कर्म में महान सब लगे "
No comments:
Post a Comment