महाराष्ट्र की राजनीति, नए - नए समीकरण बना रही है,
घडी रुकने को तैयार नहीं, हाथ को किसी का साथ नहीं चाहिए,
कमल को कोमल नहीं पड़ना और शिवशेना को अपने तरकश से तीर नहीं छोड़ना,
सब अड़े हुए है, सबको मुख्यमंत्री बनना है,
अपने तो अलग हुए ही जनता को भी अलग - अलग बाट दिया,
अब तो प्रांतवाद, भाषावाद और जातिवाद जोर पकड़ेंगे,
देश विकास और महाराष्ट्र का विकास छोड़ सब अपना अपना विकास करने में लगे हुए है,
किसका बहुमत, किस का अल्पमत यह तो समय ही बताएगा,
पहले दिल्ली, फिर मुंबई बिना मुख्यमंत्री के,
यह हमारे महान भारत के महानगर है,
इन महानगरो को हमारे महान नेता कहाँ ले जा कर खड़ा करेंगे पता नहीं।
एक आर्थिक राजधानी, और दूसरी राजनितिक,
दोनों का भविष्य देश के इन कर्ण धारो पर अवलम्बित है,
अतः सभी समझदारी से काम ले, आपसी सहमति बनाए तो अच्छा है,
कही ऐसा न हो की ये पार्टिया वापस चुनाव के कगार पर खड़े हो।
घडी रुकने को तैयार नहीं, हाथ को किसी का साथ नहीं चाहिए,
कमल को कोमल नहीं पड़ना और शिवशेना को अपने तरकश से तीर नहीं छोड़ना,
सब अड़े हुए है, सबको मुख्यमंत्री बनना है,
अपने तो अलग हुए ही जनता को भी अलग - अलग बाट दिया,
अब तो प्रांतवाद, भाषावाद और जातिवाद जोर पकड़ेंगे,
देश विकास और महाराष्ट्र का विकास छोड़ सब अपना अपना विकास करने में लगे हुए है,
किसका बहुमत, किस का अल्पमत यह तो समय ही बताएगा,
पहले दिल्ली, फिर मुंबई बिना मुख्यमंत्री के,
यह हमारे महान भारत के महानगर है,
इन महानगरो को हमारे महान नेता कहाँ ले जा कर खड़ा करेंगे पता नहीं।
एक आर्थिक राजधानी, और दूसरी राजनितिक,
दोनों का भविष्य देश के इन कर्ण धारो पर अवलम्बित है,
अतः सभी समझदारी से काम ले, आपसी सहमति बनाए तो अच्छा है,
कही ऐसा न हो की ये पार्टिया वापस चुनाव के कगार पर खड़े हो।
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