Friday, 3 October 2014

विजयादशमी … अधर्म पर धर्म की विजय।

विजयादशमी, अधर्म पर धर्म की, बुराइओं पर अच्छाई की विजय,
यह युद्ध दो व्यक्तियों का युद्ध नहीं बल्कि दो विचार धाराओ का युद्ध था,
एक ओर अहंकारी और कामी रावण तो दूसरी तरफ मर्यादापुर्षोत्तम राम,
रावण का दस मुख काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, मत्सर आदि का प्रतिक है,

सारे द्वेष, ईर्ष्या, द्भेष, भेदभाव को ख़त्म कर दशहरा मनाए,
मानव का मानव से प्रेम हो,इंसानियत, मानवता, सेवा की भावना से परिपूर्ण हदय  हो,
स्वतंत्र व्यक्ति, संगठित समाज को भावी पीढ़ी के सामने रखे,
हर व्यक्ति, समाज और देश की जय ही सच्चे अर्थो में विजयादशमी है।

राम जैसे नम्र, विचारशील और महान बने,
रावण जैसा विद्वान बने,
सारी इच्छा का दमन कर,
केवल अच्छा इंसान बने।
रावण जैसे महाप्रतापी ,विद्वान ,चारो वेदों के ज्ञाता ,और शिव के महान भक्त को उसके अहम " मैं " ने मारा
अंहकार सब खत्म कर देता है.

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