Thursday, 9 October 2014

स्वयं जियो और दुसरो को भी जीने दो।

जो पेड़ आपको कड़ी धुप से बचाता है, छाया देता है, फूल और फल देता है उसी को सर्दियों में काट कर हम अलाव  जलाते है।  जीवन भी इसीतरह है, जो लोग हमें मुसीबत में सहारा देते है, उसी के हम दुश्मन बन जाते है। छोटी - छोटी बातो को लेकर झगड़ा, क़त्ल आम बात होगयी है। नैतिकता लुफ्त हो गयी है। भाई - भाई का दुश्मन बनता जा रहा है। पडोसी - पड़ोसी को देखना नहीं चाहता। मन में द्वेष और ईर्ष्या व्याप्त है। लेकिन चेहरे पर बनावटी मुस्कान ओढ़े हुए है, सहकर्मी को शान्ति से रहते देख नहीं सकते।

यह कैसी मानसिकता में हम जी रहे है। हम खाली हाथ आये थे, खाली हाथ ही जायेंगे।
रोते हुए आए लेकिन जाये इस तरह की दूसरे लोग हमे याद करे तो हमारी याद में उनकी आँखों में भी आँसू आजाये।


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