Thursday, 18 December 2014

तालिबानी अंकल मुझे मत मारो - एक मासूम बच्चा

बच्चे का प्रथम दिन पाठशाला का, न जाने कितने दिनों से प्रतीक्षा थी,
स्कूल ड्रेस, बैग, नाश्ते का डिब्बा, वाटर बोतल सब तैयार थे,
बच्चा एकदम प्रफुल्लित, उत्साह से भरपूर,
मेरे लाडले को किसी की नज़र ना लगे इसलिए बलैया भी ली,


माँ व्याकुल हो रही थी बच्चे को गेट के अंदर जाते हुए देखते,
पर भविष्य का सवाल भी था,
बच्चा भी बार - बार मूड मूड कर देखता रहा,
माँ उसका मन पसंद नाश्ता बना कर प्रतीक्षा कर रही थी,
पर माँ को क्या पता था यह प्रतीक्षा, प्रतीक्षा ही रह जाएगी,
भविष्य बनने की जगह उसका जनाज़ा निकलेगा,
इस मासूम बच्चे ने क्या अपराध किया था ?
जो शायद गिरगिडा कर कह रहा होगा -
"तालिबानी अंकल मुझे मत मारो, मुझे तो बड़ा बन कर अपना और अपने देश का नाम रोशन करना है "
पर तालिबानियों पर उसका क्या असर क्युकी उन्हें तो जिंदगी की जगह मौत से प्यार है,
खून देखने की आदि आँखें किसी मासूम की आँखों से बहे आसु का क्या महत्त्व समझेंगे।






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