आजकल धर्मांतरण पर चर्चा जोरों पर है। कोई घर वापसी कर रहा है तो कोई धर्म परिवर्तन करा रहा है।
यह ज्यादातर आदिवासी, दलित, और गरीब लोगो के साथ ही होता है।
अगर हर धर्म परिपूर्ण है तो क्यों व्यक्ति को दूसरे धर्म का मुह ताकना पड़ता है ?
क्यों बाबासाहेब आंबेडकर को अपने अनुयाइयो के साथ बौध्या धर्म स्वीकार करना पड़ा ?
कोई सेवा और लालच से बनाता है तो कोई जबरदस्ती।
धर्मपरिवर्तन तो हुए है और हो रहे है, लेकिन उसके ऊपर कठोर कानून लाना भी कोई नहीं चाहेगा।
क्यूंकि की दोनों पक्ष को नुक्सान है धर्मपरिवर्तन करने वालो को, और घर वापसी वालो को, दोनों को भी पहले अपने गिरेबां में झाकना पड़ेगा। अगर अस्पृक्षता, जाती - भेद जैसी समस्या रहेगी तो यह भी होगा ही।
सुरक्षा, सम्मान, स्वतंत्रता, रोटी - कपडा - मकान, ये हमारी प्राथमिक आवश्यकताएं है और अगर व्यक्ति को अपने धर्म में ही सब कुछ हासिल है तो धर्म परिवर्तन वाली समस्या ही नहीं रहेगी।
यह ज्यादातर आदिवासी, दलित, और गरीब लोगो के साथ ही होता है।
अगर हर धर्म परिपूर्ण है तो क्यों व्यक्ति को दूसरे धर्म का मुह ताकना पड़ता है ?
क्यों बाबासाहेब आंबेडकर को अपने अनुयाइयो के साथ बौध्या धर्म स्वीकार करना पड़ा ?
कोई सेवा और लालच से बनाता है तो कोई जबरदस्ती।
धर्मपरिवर्तन तो हुए है और हो रहे है, लेकिन उसके ऊपर कठोर कानून लाना भी कोई नहीं चाहेगा।
क्यूंकि की दोनों पक्ष को नुक्सान है धर्मपरिवर्तन करने वालो को, और घर वापसी वालो को, दोनों को भी पहले अपने गिरेबां में झाकना पड़ेगा। अगर अस्पृक्षता, जाती - भेद जैसी समस्या रहेगी तो यह भी होगा ही।
सुरक्षा, सम्मान, स्वतंत्रता, रोटी - कपडा - मकान, ये हमारी प्राथमिक आवश्यकताएं है और अगर व्यक्ति को अपने धर्म में ही सब कुछ हासिल है तो धर्म परिवर्तन वाली समस्या ही नहीं रहेगी।
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