Saturday, 13 December 2014

संस्कृत को लेकर इतनी हाइ - तौबा क्यों ?

संस्कृत और भगवत गीता की चर्चा इनदिनों जोरो पर है,
संस्कृत को अनिवार्य भाषा बनाए जाने की मांग है,
पर भारत में कितने लोग है जो संस्कृत जानते है और बोलते है ?,
पहले भी यह देव भाषा और ब्राम्हणो की भाषा मानी जाती थी।

सारी भारतीय भाषाओ की जननी ही संस्कृत है लेकिन उसका उपयोग नाम मात्र के लिए है,
केवल शादी  - ब्याह, पूजा - पाठ या फिर कुछ पाठशालाओं में ऑप्शनल सब्जेक्ट के रूप में,
संस्कृत की तो छोड़िये, हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाए भी हमसे छुटटी जा रही है,
कारण की उसका उपयोग विज्ञान, आईटी, कंप्यूटर, नई टेक्नोलॉजी नाम मात्र ही है।

हम सत्य को क्यों नहीं स्वीकार करते ?
हमारा इतिहास स्वणिम है लेकिन वर्तमान को भी स्वणिम बनाने के लिए हमें सत्य को स्वीकारना होगा।
भाषा वही चलेगी जो सहज और व्यवारिक हो, रोजी - रोटी से जुडी हो।


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